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बीकानेर के व्याख्यान ]
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पूर्ण करते हैं। आप देवताओं से आशा रखते हैं, इसी कारण वे आपकी आशा पूरी नहीं करते । अगर आप तन, मन, धनपरमात्म-समर्पण कर दें तो देवता आपकी आशा पूरी करेंगे और इन्द्र दास हो जाएँगे ।
मन रात-दिन घोड़े की तरह दौड़ लगाता रहता है । लेकिन यह देखना आवश्यक है कि परमात्मा की ओर कितना दौड़ता है और नीच कामों की ओर कितना दौड़ता है ? यह अपूर्व चीज़ आपको मिली है । क्षण भर के लिए भी इसका दुरुपयोग मत होने दो। सोते-बैठते सब समय परमात्मा में ही मन संलग्न रहना चाहिए ।
सुत्ता मुहिया
जितात्मा संयमी मुनि जब सोते हैं तब भी उनके योग उसी प्रकार काम करते रहते हैं, जैसे कि जागृत अवस्था में करते हैं । कुम्भार का चाक वेग के साथ घुमाकर छोड़ दिया जाता है तो थोड़ी देर तक बिना घुमाये घूमता रहता है । इसी प्रकार जिसने जागते समय मन को परमात्मा में सम्पू-र्णता के साथ लगाया है, उसका मन सोते समय भी वहाँ लगा रहेगा। जो निरन्तर परमात्मा की भावना से हृदय को भावित करता रहेगा, उसका मन सुषुप्ति दशा में अन्यत्र जा ही नहीं सकता ।
आज अधिकांश लोग ऊपरी दिखावे के लिए परमात्मा के भक्त बनते हैं । जैसे कोई अच्छा मकान बनाने वाला समझता
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