________________
२६४]
[जवाहर-किरणावली
यह मुफ्त में भी नहीं मिले हैं। इनके लिए पहले से संचित पुण्य की एक बड़ी राशि खर्च करनी पड़ी है और पुण्य की पूजी पैसे की पूंजी से हल्की नहीं वरन् बहुत ज्यादा कीमती है । कहना चाहिए कि पुण्य की पूजी से ही पैसे की पूजी प्राप्त होती है । जब पुण्य समाप्त हो जाता है तब ज़मीन खोदकर गाड़ा हुश्रा धन भी कोयला हो जाता है, मोतियों की माला भी सांप बन जाती है। इस प्रकार पुण्य ही सब प्रकार की सम्पत्ति का आद्य स्रोत है। जिस वस्तु के लिए पुण्य को व्यय करना पड़ता है वह बड़ी कीमती वस्तु है ! इस दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होगा कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम की अपेक्षा भी मन, वचन और काय का संगम होना कठिन है।
गंगा यमुना और सरस्वती के एक ही जगह मिलने से उस स्थान को त्रिवेणी कहते हैं और लोग उसे तीर्थ मानते हैं । इसी प्रकार मन, वचन और काय का जहाँसंगम है, वह क्या तीर्थ से कम है ? यह तीर्थ सञ्चा तीर्थ है, जिसके द्वारा भवसागर तिरा जा सकता है। मगर इन तीनों के लिए आपको इस समय पैसा नहीं देना पड़ा है, इसीलिए आप इनकी कद्र नहीं करते ! फिर भी विचार करने पर मालूम होगा कि यह कितनी उत्तम वस्तुएँ हैं। आपके मन, वचन
और तन की आर्थिक दृष्टि से कितनी कीमत है ? कितना धन लेकर आप अपना मन बेच सकते हैं ? कितने रुपये पाकर
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com