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[जवाहर-किरणावली
गिरता है तो मोती बन जाता है। तब यह आदर पाता है
और उसे धारण करने के लिए राजा अपना कान छिदवाता है और रानी अपनी नाक छिदवाती है। वह मोती है उसी पानी का प्रताप, मगर पानी जब सीप से मिला तभी उसे यह प्रतिष्ठा मिली। उत्तम पात्र को पाकर पानी भी उत्तम हो गया।
जल के बूंद की दूसरी गति है कमल के पत्ते पर गिरना । कमल के पत्ते पर गिरने वाला पानी मोती तो नहीं बनता, लेकिन मोती सरीखा दिखाई देता है। उसकी कीमत तो नहीं श्रा सकती फिर भी देखने से चित्त को वह प्रसन्न अवश्य करता है। ___ जो जल-विन्दु सीप में पड़कर मोती बन जाता है, कमल के पत्ते पर पड़कर मोती सरीखा दिखाई देने लगता है, वही अगर गरम तवे पर पड़ जाय तो तत्काल भस्म हो जाता है। यह उसकी तीसरी गति हुई।
जल-विन्दु की यह तीन बड़ी गतियाँ बतलाई गई हैं। उसकी अवान्तर दशाएँ तो बहुत-सी हैं । जैसे-वह अन्न में पड़कर अन्न-सा हो जाता है, इक्षु में पहुँचकर मधुर हो जाता है, नीम में पहुँचकर कटुक बन जाता है और साँप के मुँह में पड़कर ज़हर बन जाता है। इस प्रकार की अनेक अवस्थाएँ उसकी होती हैं । मगर तीन अवस्थाएँ उसकी ध्यान आकर्षित करने वाली हैं । इन तीन अवस्थाओं में से स्तुतिकर्ता ने यहाँ मध्यम अवस्था पकड़ी है। मध्यम के सहारे आदि और अन्त
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