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[जवाहर-किरणावली
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सब अावश्यकताएँ अनायास ही पूरी हो जाती हैं । इस कारण वे चोरी आदि कुकर्मों से बचे रहते हैं और इसी कारण वे नरक एवं तिर्यंच गति से भी बचे रहते हैं। फिर भी उन्हें मोक्ष नहीं मिलता। अनन्त बार युगलियों के भोग भोग लेने पर भी आत्मा का प्रयोजन सिद्ध नहीं हुआ।
जुगलियों की इस अवस्था में भगवान् ऋषभदेव का जन्म हुआ । उनके जन्म लेते ही संसार पलट गया । कल्पवृक्षों ने फल देना बन्द कर दिया जैसे पहले मांगने से सब कुछ मिल जाता था, अब मिलना बन्द हो गया। __ कोई कह सकता है कि भगवान् के जन्म से पहले आनंद था, शांति थी, मगर भगवान् के जन्म लेते ही हाय-हाय मच गई ! ऐसी हालत में भगवान् का जन्म अशान्तिकारक हो गया ! लेकिन गीता में कहा है
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहं ।। जैनधर्म के अनुसार इस श्लोक का अर्थ दूसरे प्रकार से ही हो सकता है। यहाँ इसका तात्पर्य यह है कि जब धर्म की ग्लानि और अधर्म का प्रसार बढ़ जाता है तो कोई महापुरुष जन्म लेता ही है।
कहा जा सकता है कि भगवान् ऋषभदेव से पहले धर्म की कौन-सी ग्लानि हुई थी कि उनका जन्म हुआ? विना प्रारंभसमारंभ किये सीधी तरह खाने-पीने को मिल जाता था, सब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com