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बीकानेर के व्याख्यान ]
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जा सकता । सम्पूर्ण आकाश के लांघना किसी के लिए संभव नहीं है, फिर भी लोग आवश्यकता पर यथाशक्ति लांघते ही हैं । मुक्ति का मार्ग लम्बा है और कठिन भी है, यह सोचकर उस ओर पैर ही न बढ़ाना एक प्रकार की कायरता है । मार्ग कितना ही लम्बा क्यों न हो, अगर धीरे-धीरे भी उसी दिशा में चला जायगा तो एक दिन वह तय हो ही जायगा, क्योंकि काल भी अनन्त है और आत्मा की शक्ति भी अनन्त है । इस दृढ़ श्रद्धा के साथ जो भगवान् के मार्ग पर चलेगा और निराश न होकर चलता ही जाएगा, उसे अवश्य ही अक्षय कल्याण की प्राप्ति होगी ।
वीकानेर, ७-८ ३०
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