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बीकानेर के व्याख्यान]
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सामना न करे तो यही समझा जायगा कि उसमें पुत्रप्रेन ही नहीं है । चिड़िया अपने बच्चे की रक्षा करने के लिए बाज का सामना करती है। मतलब यह है कि शक्ति अल्प होने पर भी संतानप्रेम से प्रेरित होकर पशु-पक्षी भी उस कार्य में जुट जाते हैं, जिसे करने में वे असमर्थ होते हैं । ऐसी दशा में अगर हमारे हृदय में भक्ति है तो क्या हम परमात्मा का गुणगान किये विना रहेंगे ? अतएव स्वयं अपने हृदय को टटोलो कि मुझमें भक्ति है या नहीं? मैं यह नहीं कहना चाहता कि आपमें भक्ति है ही नहीं। ऐसा होता तो आप मेरे पास आते ही क्यों और भक्ति संबंधी उपदेश सुनते ही क्यों ? मगर अपनी त्रुटि को देखो। सोचो-हमारी भक्ति-भावना में कहाँ कमी है और क्या त्रुटि है ? मैं भी अपने संबंध में विचार करता हूँ और आप भी विचार कीजिए। एक ही काम में सब तल्लीन हो जाएँगे तो अपूर्व रहस्य निकलेगा। __मैं अपने विषय में सोचता हूँ तो भीतर से उठने वाली अन्तर्ध्वनि मुझे सुन पड़ती है और वह मेरी अनेक त्रुटियाँ मुझे बतलाती है । मैं अपनी कमी का वर्णन कहाँ तक करूँ ? मैं मन ही मन सोचता हूँ-हे आत्मन् ! तूने संयम ग्रहण किया है । गृहस्थ तो कदाचित् छुटकारा पा सकते हैं लेकिन तू क्या कहकर अपना बचाव कर सकता है ? तिस पर भी तेरे ऊपर प्राचार्य पद का उत्तरदायित्व है। अगर तू भक्ति में लग जाय और उसी में तल्लीन रहे तो कोई भी त्रुटि शेष न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com