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बीकानेर के व्याख्यान ]
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-------- ने पिया था। मीरां को भी उसे पीने की आवश्यकता नहीं थी। वह तो मौका आ जाने के कारण पीना पड़ा था। मैं कटुक शब्द रूपी विष को पीने के लिए कहता हूँ। जब आपके कान रूपी प्याले में कटुक शब्द रूपी विष पड़े, तब आप उसे अमृत समझ कर पी जाएँ । अगर आप में इतनी शक्ति आ जाय तो समझ लीजिए कि आपके हृदय में भक्ति आगई है। धीर वीर और गंभीर पुरुष ही इस विष का पान कर सकते हैं और फिर सब ऋद्धियाँ उनकी दासी बन जाती हैं।
तात्पर्य यह है कि भक्ति की आन्तरिक प्रेरणा शक्ति से परे का भी कार्य करने को विवश कर देती है । जब एक मृग जैसा पशु भी अपनी संतति के प्रेम के वश होकर अपने प्राणों की ममता छोड़कर, अपनी शक्ति का विचार न करके सिंह के मुख से अपने बालक को छुड़ाने के लिए तैयार हो जाता है तो जिस मनुष्य में परमात्मा के प्रति प्रकृष्ट प्रेम है, जिसके चित्त में भगवान् की भक्ति की लहरें उठती हैं वह क्यों विवश न होगा?
सुबुकुतगीन बादशाह का वृत्तान्त इतिहास में आया है। वह अफगानिस्तान का बादशाह था। वह एक गुलाम खानदान में पैदा हुआ था और सिपाही था। एक बार वह ईरान से अफगानिस्तान की ओर घोड़े पर सवार होकर आ रहा था। मार्ग की थकावट से या किसी अन्य कारण से उसका घोड़ा मर गया। जो समान उससे उठ सका वह तो उसने उठा लिया और शेष वहीं छोड़ दिया। मगर उसे भूख इतनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com