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[जवाहर-किरणावली
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बोलता हो ?
मित्रो! जब ऋतुराज वसन्त का आगमन होता है तब आम्र के बगीचे फूल उठते हैं। आमों में मंजरियाँ आ जाती हैं । प्रकृति अनोखे सौन्दर्य से सज जाती है ! उसकी रचना है। कुछ अलबेली हो जाती है। उस समय प्रकृति के सौन्दर्य के उपासक आम्रवृक्षों पर आकर किलोल करते हैं। उनमें कोयल नामक एक पक्षी भी होता है। जब ग्राम की मंजरियों का सौरभ वायुमंडल को सुवासित करता है, तब वह कोयल अपने सुमधुर कंठ से पंचम स्वर में पालापती है।
शास्त्र में पंचम स्वर का बड़ा माहात्म्य बतलाया गया है और भगवान् के शब्दों की उपमा पंचम स्वर से दी गई है। __ कोयल के उस मधुर आलाप में क्या रस है और कितनी मिठास है, यह तो कोई अनुभवी ही जान सकता है या कोई वैज्ञानिक समझ सकता है। दूसरों को उसका पता चलना कठिन है। वैज्ञानिक कहते हैं कि कोयल के स्वर का मुकाबिला अन्य स्वर नहीं कर सकते। मगर देखना यह है कि कोयल उस समय जो राग आलापती है सो क्या किसी की खुशामद के लिए? कोई उसके राग को सुने या न सुने, चाहे कोई धनिक सुने या गरीब सुने, कोई निन्दा करे या प्रशंसा करे, कोई गाने को कहे या बंद करने को कहे, कोयल अपनी इच्छा के अनुसार गाती है और अपनी इच्छा के अनुसार ही गाना बंद करती है। यह किसी के कहने सुनने की या
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