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[ जवाहर-किरणावली
मगर भक्त वह है जो इस ज़हर को चढ़ने ही नहीं देता। वास्तव में जिसके हृदय में दुर्वचन सुनकर भी क्रोध नहीं होता और जिसके मन में विकार नहीं आता, वह महापुरुष कोटिकोटि धन्यवाद का पात्र होता है।
भक्ति के विषय में मीरां बाई कहती है
अब तो मेरो राम नाम दूसरो न कोई । मात छोड़े तात छोड़े छोड़े सगे साई ।। संतन संग बैठ बैठ लोक लाज खोई । अन्त में से तन्तु काद पीछे रही सोई ॥ राणा मेल्या विषना प्याला ।
पी के मस्त होई ॥ अब तो० ॥ मीरां कहती है-इस संसार में परमात्मा के सिवाय मेरा कोई नहीं है।' इसे कहते हैं भक्ति ! जब मृगी अपने बच्चे की रक्षा के लिए सिंह के सामने जाती है तब उसे संसार में बच्चे के सिवाय और कुछ नहीं दीखता । उस समय वह अपने प्राणों को भी तुच्छ समझती है। इसी प्रकार हृदय में अगर परमात्मा की सच्ची भक्ति हो तो दूसरी बात याद ही नहीं आनी चाहिए। अगर दूसरी बात याद आई तो समझ लो कि भक्ति में कमी है।
मीरां कहती है-संसार में परमात्मा के सिवाय और कोई नहीं है। संसार, शरीर और शरीर से संबंध रखने वाली सब वस्तुएँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com