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[जवाहर-किरणावली
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रहे । जब तुझे किसी पर क्रोध न आवे, जब तू दूसरे के कहे हुए कटुक वचनों को अमृत मानने लगे, ऐसी अद्भुत जागृति तेरी अन्तरात्मा में आ जाय, तभी समझना चाहिए कि तुझ पर भक्ति का रस चढ़ा है। जहाँ प्रभुभक्ति है वहाँ क्रोध नहीं हो सकता । भक्त पर अगर कोई जुल्म करता है तो भक्त कहीं फरियाद करने नहीं जाता। परमात्मा ही भक्त का न्यायाधीश है और परमात्मा का दरबार ही उसका न्यायालय है । भक्त अगर किसी दूसरे के पास फरियाद करने जाता है तो समझना चाहिए कि उसने अभी तक परमात्मा को पहिचाना ही नहीं है। जैसे सांभर झील में पड़ी हुई सब वस्तुएँ नमक बन जाती हैं, उसी प्रकार भक्त के कानों में पड़ा हुआ प्रत्येक शब्द अमृत बन जाता है, चाहे दूसरों को वह वाण सरोखा तीखा या विष के समान कटुक भले प्रतीत हो । भक्त गाली सुनकर सोचता है कि गाली देने वाला मेरी सहनशीलता की परीक्षा कर रहा है। मुझे इस परीक्षा में उत्तीर्ण होना चाहिए।
शास्त्र में शमा को मुनि का प्रधान लक्षण बतलाया गया है। भक्ति जितनी गाढ़ी होगी, क्षमाभावना उतनी ही प्रबल होगी। भक्त को क्रोध नहीं आ सकता। और विना क्षमा के भक्ति नहीं होती।
वर्षा ऋतु में जब वर्षा होनी और कीचड़ की अधिकता के कारण आना-जाना रुक जाता-कोई खास काम न रहता,
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