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[ जवाहर-किरणावली
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डूब जाने की स्थिति आ पहुँची । मल्लाहों ने तन तोड़ परिश्रम किया मगर जहाज की रक्षा करने में सफल नहीं हो सके । अन्त में वे भी हार गये। उन्होंने कह दिया-अब हमारा वश नहीं चलता। जहाज थोड़ी देर में डूब जायगा । जिसे बचने का जो उपाय करना हो करे।
ऐसे विकट प्रसंग पर कायर पुरुष को रोने के सिवाय और कुछ नहीं सूझता । कायर नहीं सोचता कि रोना व्यर्थ है । रोने से कोई लाभ न होगा । अगर बचाव का कोई रास्ता निकल सकता है तो सिर्फ उद्योग करने से ही।।
मल्लाहों का उत्तर सुनकर साहूकार का लड़का पहले शौचादि से निवृत्त हुआ। उसने अपना पेट साफ़ किया । फिर उसने ऐसे पदार्थ खाये जो वजन में हल्के किन्तु शक्ति अधिक समय तक देने वाले थे । इसके बाद उसने अपने सारे शरीर में तेल की मालिश की, जिससे समुद्र के खारे पानी का चमड़ी पर असर न पड़े। फिर उसने शरीर से सटा हुआ चमड़े का वस्त्र पहना जिससे मच्छ-कच्छ हानि न पहुंचा सकें । इतना करने के बाद वह एक तख्ता लेकर समुद्र में कूद पड़ा । उस तख्ते के सहारे वह किनारे लगने के उद्देश्य से तैरने लगा।
साहूकार के लड़के ने सोचा-ऐसे समय में जहाज बड़ा नहीं, अात्मा बड़ा है । इसलिए जहाज को छोड़ देना ही ठीक है । जहाज छोड़ देने पर भी मृत्यु का भय तो है ही, लेकिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com