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बीकानेर के व्याख्यान 1
झपट कर तलवार पकड़ ली ।
विद्वान् की बात सुनकर राजा सोचने लगा - प्रजा को अशिक्षित रखकर बन्दर के समान मूर्ख बनाए रखने से क्या हानि होती है, यह बात आज मेरी समझ में आई । मगर राजा ने पण्डित से पूछा- तुम पण्डित होकर चोरी करने आये हो ?
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पण्डित - मैं जुआ खेलने के व्यसन में पड़ गया था । एक दुर्व्यसन भी मनुष्य के जीवन को किस प्रकार पतित कर देता है, किस प्रकार विवेक को विनष्ट कर देता है, इसके लिए मैं उदाहरण हूँ। जुआ के दुर्व्यसन ने मेरी पण्डिताई पर पानी फेर दिया है । मेरी विद्वत्ता जुए से कलंकित हो रही है । मैं आपके सामने उपस्थित हूँ । जो चाहें, करें ।
मतलब यह है कि नादान दोस्त की अपेक्षा ज्ञानवान् शत्रु भी अधिक हितकारी होता है । ज्ञानवान् अपने कल्याणअकल्याण का शीघ्र समझ जाता है । ज्ञान का प्रकाश मनुष्य को शीघ्र ही सन्मार्ग पर ले जाता है । पथभ्रष्ट मनुष्य भी, अगर उसके हृदय में ज्ञान विद्यमान है तो, एक दिन सत्पथ पर आये विना नहीं रहेगा । अतएव प्रत्येक दशा में ज्ञान जीवन को उन्नत बनाने में सहायक होता है ।
अगर आप लोग ज्ञान का सच्चा महत्त्व समझते हैं तो अर्हन्त भगवान् के ज्ञान का प्रचार कीजिए। आप स्वयं ऐसे
काम कीजिए जिससे ज्ञान का प्रचार हो । अर्हन्त के ज्ञान का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com