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[जवाहर-किरणावली
के चरित्र से भी मिलती है। ज्ञानी पुरुष विचार करता है
आत्मा तो इस वेश्या का भी वैसा ही है, परन्तु दुर्गुणों के के कारण उसमें मलीनता आ गई है। दुर्गुण आत्मा को पतित कर देते हैं, इस सचाई का प्रत्यक्ष उदाहरण वेश्या है । अतएव हे आत्मन् ! तू दुर्गुणों दूर रहना ! वेश्या के दुर्गुणों को और पतन को देखकर तु सावधान हो जा।
सीता सत्कर्म में प्रवृत्त करने के कारण हितकारिणी है और वेश्या (ज्ञानी के लिए ) दुष्कर्म से से बचाने का निमित्त होने से हितकारिणी है।
ज्ञानियों ने नरक के जीवों का हाल बताया है या नहीं ? . 'बताया है !' मृगापुत्र ने कहा है:
सातों नरका हूँ गयो ने अनन्त अनन्ती बार, छेदन भेदन मैं सह्याजी सही अनन्ती बार ।
रे जननी ! अनुमति दो म्हारी मांय ॥ मृगापुत्र अपनी माता से आज्ञा मांग रहे हैं। आप भी कभी ऐसी आज्ञा मांगते हैं ?
'हिम्मत नहीं !' हिम्मत तो हम देते हैं मगर आपकी इच्छा कहाँ है ? आपके अन्तर में भी एक मां है। उससे प्राक्षा मांगकर कहो कि मैं नरक के जीवों का मित्र बनता हूँ। अगर नरक के जीवों की घोर यातना जानकर आप नरक से बचने का प्रयत्न Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com