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बीकानेर के व्याख्यान]
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को भी भगवान् की चरण-नौका ने तार दिया है।
प्रश्न हो सकता है जिस समय भगवान् सशरीर विद्यमान थे उस समय उनके चरणों का दर्शन हो सकता था
और चरण पकड़े भी जा सकते थे। मगर आज क्या किया जाय ? आज भगवान् मौजूद नहीं हैं और उनके चरण पकड़े बिना संसार-सागर से तर नहीं सकते । तो क्या अब अनन्त भवसागर में ही गोते लगाते रहना पड़ेगा ?
इस प्रश्न के संबंध में पहले ही कहा जा चुका है कि सम्यग्ज्ञान के साथ पालन किया जाने वाला सम्यक् चारित्र ही असल में चरण है। दया रूप मोक्षमार्ग ही भगवान् का चरण है। और उस मोक्षमार्ग को ग्रहण करना ही भगवान के चरण ग्रहण करना है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र को ग्रहण न किया जाय तो भगवान् के साक्षात् मिल जाने पर भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। प्रयोजन की सिद्धि तो इस रत्नमय की प्राप्ति से ही हो सकती है। जो मनुष्य संसार-सागर से तिरने की इच्छा रक्खेगा वह कभी नहीं कहेगा कि भगवान् नहीं हैं या उनके चरण नहीं हैं। जब भगवान् के बतलाये सम्यग्ज्ञान, चारित्र मौजूद हैं तो समझना चाहिए कि भगवान के चरण ही मौजूद हैं। .. जो जीव भगवान के चरणों का प्राथय लेना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि वे प्रारंभ और परिग्रह की लहरों से बचकर
भगवान के चरणों का प्राश्रय लें। जिन्होंने प्रभु के परम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com