________________
बीकानेर के व्याख्यान]
[२२३
किये विना केवलि द्वारा प्ररूपित धर्म नहीं सुहाता । यह पीली
और सफेद मिट्टी (अर्थात् सोना और चांदी) ही धर्म का प्राचरण करने में बाधक नहीं है वरन् लोगों की बढ़ी हुई तृष्णा भी बाधक है। ज्ञानी जन कहते हैं कि सर्वश भगवान् के कथित धर्म का श्रवण करने से यह लालसा शान्त हो जाती है। जिसने धर्म को सुनकर उस पर मनन किया होगा वह अपनी सम्पत्ति को अपने भोग-विलास के लिए नहीं समझेगा किन्तु संसार के लाभ के लिए समझेगा। और ऐसा समझने वाला ही भगवान का सच्चा भक्त हो सकता है । इसलिए मैने कहा है कि एक साथ धन की और भगवान् की सहायता नहीं मिल सकती।
सेवा करने वाला सेवक कहलाता है। जो भगवान् की सेवा करना चाहता है वह जड़ पदार्थों की सेवा नहीं कर सकता । एक प्रश्न आप अपने अन्तःकरण से पूछिए-तू धन का सेवक है या स्वामी है ? अगर आप धन के सेवक नहीं है नो भगवान् की सेवा कर सकते हैं और यदि धन के सेवक हैं तो फिर भगवान् के सेवक नहीं बन सकते। जो धन का गुलाम है उसे अन्याय और न्याय नहीं सूझता। उसे पैसा ही पैसा सूझता है । और जिसे पैसा ही पैसा सूझता है उसे भगवान् कैसे सूझेगा? वह भगवान् की सेवा नहीं कर सकता। उसके लिए पैसा ही परमेश्वर बन जाता है।
काम कराने के लिए नौकर रखा जाता है। अगरनीकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com