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बीकानेर के व्याख्यान ]
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प्राचार्य ने कहा है कि मैं भी उम चरणों की स्तुति करूँगा।
प्रश्न हो सकता है-तीन ज्ञान के धनी देवराज इन्द्र ने भगवान की प्रभावशाली स्तोत्रों द्वारा स्तुति की है। क्या
आप उससे भी अधिक प्रभावशाली स्तुति कर सकते हैं ? अगर नहीं कर सकते तो फिर क्यों व्यर्थ चेष्टा करते हैं ? इसके उत्तर में आचार्य कहते हैं
बुद्धया विनाऽपि विबुधार्चितपादपीठ ! स्तोतु समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् । बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुविम्बम
अन्यः क इच्छति जनः सहसा गृहीतुम् ।। प्राचार्य कहते हैं-हे प्रभो ! मैं बुद्धिहीन हूँ। इन्द्र से मैं बुद्धि में ऊँचा नहीं हूँ कि उससे भी बढ़कर स्तुति कर सकूँगा। फिर भी मेरी बाल-लीला नहीं रुकती । हे इन्द्र द्वारा पूजित सिंहासन वाले ! जहाँ आपके चरण पड़ते हैं उस पाट को भी इन्द्र नमस्कार करता है । मुझमें ऐसी बुद्धि नहीं है कि आपके गुणों का कीर्तन कर सकूँ । फिर भी आपके गुणकीर्तन की अभिलाषा ऐसी प्रबल हो उठी है कि वह रोके नहीं रुकती। विद्वत्ता मुझमें से निकल गई है और में बालभाव में आ गया हूँ। अतएव मुझे यह शर्म नहीं रही कि मुझसे स्तुति बनेगी या नहीं बनेगी ! बालक नहीं सोचता कि मुझसे यह काम हो सकेगा या नहीं, फिर भी वह काम में जुट जाता है। ऐसी ही
अवस्था मेरी है। मेरी यह स्तुति, नहीं, बालचेष्टा है । जैसे स्तुति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com