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[ जवाहर किरणावली
घर वाले शर्मिन्दा हो गये । उनकी लड़ाई समाप्त हो गई और मेल-मिलाप से रहने लगे ।
मित्रो ! बालक लड़-झगड़ कर एक हो जाते हैं, इसी प्रकार अगर आप लोग भी आपस में एकता पूर्वक रहें तो कैसा आनन्द हो ? एकता आपको इतनी शक्ति प्रदान करेगी कि आप अपने को अपूर्व शक्तिशाली समझने लगेंगे। मगर बड़े लोगों की लड़ाई भी बड़ी होती है । वे लड़कर आपस में मिलते तक नहीं है । यहाँ तक कि धर्मस्थान में अगर पासपास बैठना पड़ जाय तो भी एक दूसरे को देखकर गाल फुलाने लगते हैं ! यह कहाँ तक उचित है ? ऐसे करने वाले बड़े अच्छे या ऐसा न करने वाले नादान बालक वास्तव में ही सरलहृदय होते हैं ।
बालक अच्छे ?
इसी कारण आचार्य कहते हैं—-जब मैं बालक हुआ तभी मुझसे स्तुति बनी। बड़ा बना बैठा रहता तो स्तुति बनती ही नहीं । इस प्रकार अपनी बुद्धिमत्ता का ढोंग छोड़ कर जो बालक के समान सरल बन जाता है, उसके क्लेशों का अंत श्रा जाता है । जब आप सच्च अन्तःकरण से अपने अपराध के लिए क्षमा याचना करेंगे और उदारता के साथ अपने अपराधी को क्षमादान देंगे तो आपके हृदय का शल्य निकल जायगा और आप ऐसी शांति पाएँगे, जो अनुभव करने की चीज़ है । आपस में वैर भाव रखना और अदालत की शरण लेना धर्मप्रिय लोगों के लिए उचित नहीं है । अदालत का शरण लेने से
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