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बीकानेर के व्याख्यान ]
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अदावत का अन्त नहीं होता। ऐसा करने में लाखों-हजारों रुपयों का पानी हो जाता है और अन्त में अदावत कई गुनी बढ़ जाती है। अगर दूसरा धर्म छोड़ता है तो उसका अनुकरण मत करो। तुम अपना धर्म मत छोड़ो । बालक माता के पेट में से कुचालें सीखकर नहीं आते, यहाँ माँ-बाप से ही सीखते हैं । इसलिए उनके सामने शांति और प्रेम का आदर्श उपस्थित करो ।
धर्म और सदाचरण ही प्रभु के चरण हैं। उनकी शरण गहे। और उन्हें अपने हृदय में स्थापित करो। बालस्वभाव धारण करके सरलता, शांति और स्नेह की भावनाएँ बढ़ाओ । वैर-विरोध को पास मत फटकने दो। इससे आपका अन्त:करण हल्का होगा और अन्तःकरण हल्का होगा तो आत्मा गुरुता आएगी ।
में
बीकानेर, ११-७-३०.
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