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बीकानेर के व्याख्यान]
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धर्म उसी को प्यारा लगेगा जिससे प्रारंभ-परिग्रह का त्याग होगा, यह कथन सत्य ही है। मगर यह आवश्यक नहीं कि सभी लोग एकदम ही सम्पूर्ण प्रारंभ-परिग्रह त्याग दें । जैसे किसी ऊँचे महल पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ होती हैं और सर्वसाधारण क्रमशः सीढ़ियों पर चढ़ते हैं, उसी प्रकार प्रारंभ-परिग्रह त्यागता चलता है वही केवलि-कथित धर्म की ओर उतना ही अग्रसर होता जाता है और उतने ही अंशों में भगवान के चरणों पर निर्भर बनता जाता है। ___ महाराजा उदायी सोलह देशों पर राज्य करते थे, फिर भी वह श्रावक थे । श्रावक भी वह सिर्फ धर्म का श्रवण करने वाले नहीं वरन् आराधन करने वाले थे। उदायी के सिवाय
और भी अनेक राजा-महाराजा हुए हैं जिन्होंने परमात्मा की शरण ली है। फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि पूर्णतः प्रारंभ-परिग्रह का त्याग किये विना परमात्मा नहीं मिल सकता ?
आनन्द श्रावक के पास बारह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएँ थीं। चार करोड़ पृथ्वी में गड़ी थीं, चार करोड़ की ऊपरी सम्पत्ति थी और चार करोड़ व्यापार में लगी थीं। यह सम्पत्ति आनन्द श्रावक के पास, भगवान महावीर के समक्ष व्रत धारण करने से पहले से ही थी। व्रत धारण कर लेने पर उसने सम्पत्ति बढ़ाने का त्याग कर दिया था। अब आपको केबलि-कथित धर्म का श्रवण करने पर धन सम्बन्धी ममता
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