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[जवाहर-किरणावली
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घटाना चाहिए या बढ़ाना चाहिए ?
आनन्द श्रावक चार करोड़ स्वर्ण-मोहरों की पूँजी से व्यापार करता था; मगर सम्पत्ति बढ़ाने का उसने त्याग कर दिया था। इतना विशाल व्यापार करते हुए भी वह सम्पत्ति नहीं बढ़ने देता था। अब आप विचार कीजिए कि अानन्द ने किस उद्देश्य से और किस प्रकार व्यापार किया होगा ? गहराई से विचार करो तो आपको विदित होगा कि अानन्द का व्यापार कैसा था और आज का व्यापार कैसा चल रहा है ! आज व्यापार के नाम पर गरीबों का किस प्रकार गला घोंटा जारहा है, यह बात उसकी समझ में आ सकती है, जिसके दिल में दया का वास हो। आज के व्यापारियों ने व्यापार को व्यक्तिगत स्वार्थ-सिद्धि का साधन समझ रक्खा है, जब कि वह सामाजिक लाभ का द्वार होना चाहिए । व्यापार भी वही आदर्श समझा जा सकता है, जिसकी छाप दुनिया पर उत्तम पड़े और जिससे न्याय-नीति का प्रकाश हो। आज लोभ में पड़ी दुनिया व्यापार करती है, परन्तु दूसरे का गला घोंटने के लिए ही। कदाचित् कहीं ऐसी दुकान हो जहाँ नफा न लिया जाता हो और जो गरीबों का विश्रान्तिस्थल हो तो कितनी अच्छी बात हो!
कहा जा सकता है कि व्यापार में नफा लेकर धर्म कर देने-दान दे देने में क्या हानि है ? इसका उत्तर यह है कि पहले कीचड़ से हाथ भरे जाएँ और फिर धोए जाएँ; ऐसा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com