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बीकानेर के व्याख्यान ]
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मगर भावप्रकाश नहीं दे सकता। भगवान् के चरण भावप्रकाश देते हैं और उस प्रकाश की लोकोत्तर आभा में प्रान्तरिक तम-मोह विलीन हो जाता है । प्रभु के पदयुगल संसारसागर से पार उतारने वाली नौका हैं । ___ यहां एक प्रश्न और हो सकता है। भगवान के चरण भव-कूप से निकलने के लिए पालम्बन हैं । भगवान् त्रिलोकीनाथ हैं, वीतराग हैं और सभी भगवान् को मानते हैं। वीतराग होने के कारण उन्हें किसी से प्रार्थना, अनुनय या आजीज़ी कराने की भी आवश्यकता नहीं है। उनका सर्वत्र समभाव है। फिर भी भगवान् की चरण-नौका सब जीवों का उद्धार क्यों नहीं करती ? संसार के जीवों को दुःख में पड़ा देखकर तो यही जान पड़ता है कि इन दुखिया प्राणियों को तारने वाला कोई नहीं है ! अगर कोई तारने वाला होता तो यह बेचारे नाना प्रकार के कष्टों से क्यों पीड़ित होते ? ।
इस प्रश्न का उत्तर यह है। मान लीजिए, एक मनुष्य कृप में गिर पड़ा है। उसमें रस्सी लटकी हुई है । उसे आधाज़ दी जा रही है कि-इस रस्सी को पकड़ ले तो हम तुझे बाहर खींच लेंगे। इतना होते हुए भी अगर गिरा हुआ मनुष्य लटकती हुई रस्सी को न पकड़े तो किसका दोष समझा जाय ?
"गिरे हुए का ही !'
मधु-विन्दु के लोभ का उदाहरण प्रसिद्ध है । मधु के बूंदों के लाम में फंसे हुए एक मनुष्य को विमान में बैठने के लिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com