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[ जवाहर-किरणावली
नहीं है ? उसमें आत्मा ही न होती तो उसकी संगति कौन करता? अत्मा होने से ही वह बुरी या भली है। इस प्रकार जब उसमें आत्मा है तो उससे मित्रता करना ही उचित है। धूल को बाजीगर यदि धूल ही बतलाए तो उसकी विशेषता क्या है ? उसकी विशेषता तो इस बात में है कि वह धूल को रुपया के रूप में दिखला दे ! ऐसा करने पर ही आप उसे कुशल बाजीगर समझेंगे । इसी प्रकार तत्त्वज्ञान की कुशलता इस बात में है कि वह वेश्या को ज्ञान-प्राप्ति का साधन बना ले । वेश्या को देखकर विचार करना चाहिए कि इसने कैसा सुन्दर शरीर पाया है, फिर भी खेद की बात है कि यह पैसे के लोभ में फंसकर अपना शरीर नीच से नीच पुरुष को भी समर्पित कर देती है ! हाय ! पैसे का लोभ कितना बुरा है ! मनुष्य को कितने घोर पतन की ओर ले जाता हैं ! संसार के अधिकांश पाप पैसे के लिए या पैसे की बदौलत ही होते हैं। पैसे के संग्रह की लालसा ही संसार को विपत्ति में डाल रही है । पैसे के लिए वेश्या कोढ़ी, रोगी और नीच पुरुष का सत्कार करती है। पैसे के पाश में फंसकर ही वह अपनी प्रात्मा की हत्या कर रही है ! जिसके पास खड़ा होने को भी मन नहीं चाहता, उसे भी वह आदर देती है । यह बुराई इस बाई की नहीं, पैसे की है।
हे पात्मन् ! यह वेश्या तुझे उपदेश दे रही है कि 'मैं तो पैसे के लोभ में पड़कर बिगड़ी सो बिगड़ी, पर तू मत बिगShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com