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[ जवाहर - किरणावली
नहीं हुई । वह कत्लखाने में जाता और वहाँ कत्ल के लिए लाई हुई गाय, भैंस आदि को देखता । वह दृश्य कितना करुणा होता होगा ! उसे देखकर हृदय हिल जाता होगा। श्राप लोग मौज-मज़े में पड़कर ऐसी बातों को नहीं देखते, परन्तु प्रत्येक वस्तु के दो पहलू होते हैं । अमर ज्ञानपूर्वक देखा जाय तो विदित होगा कि कसाईखाने में मारे जाने वाले पशु भी हमारे मित्र हैं ।
कसाईखाने में जाकर पशु किस प्रकार काटे जाते हैं, कटते समय पशुओं की चेष्टा कैसी होती है, इत्यादि बातों को सुकरात देखा करता था । वह मन ही मन सोचतादूर खड़े होकर मैं इस दृश्य को देखता हूँ, फिर भी मेरे रोएँ खड़े हो जाते हैं। मगर इन मारने वालों के चित्त पर कुछ भी असर नहीं होता । इसका कारण क्या है क्या फौलाद का बना है ? मगर मनुष्य मात्र की मूल स्थिति तो एक ही सरीखी है । जान पड़ता है, इस निर्दयता का कारण लोभ है। लोभ के कारण इन्हें मारने पर भी दया नहीं आती और मुझे देखने मात्र से दया आती है ।
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इनका दिल
मतलब यह है कि दया नहीं उत्पन्न होगी जहाँ स्वार्थ न होगा । सुकरात ने विचार किया प्रभो ! तेरी अनन्त दया है कि जिस तृष्णा के वश होकर यह लोग पशुओं को मार रहे हैं और इन्हें दया नहीं आती, मैं उस तृष्णा से बचा हुआ हूँ । आप तो किसी पर छुरी नहीं फेरते ?
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