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२०८]
[ जवाहर-किरणावली
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तापूर्वक शराब न खरीदने का अनुरोध किया। मेम नहीं मानी। पिकैटिंग करने वाला स्वयंसेवक तांगे के आगे सो गया। उसने कहा-मेरे ऊपर से तांगा हाँक ले जाओ। स्वयंसेवक अपने विचार में जैसा पक्का था, मेम भी अपने विचार में वैसी ही पक्की थी ! मेम ने अपना तांगा स्वयंसेवक के ऊपर चलवा दिया और तांगे का पहिया उसकी गर्दन पर फिर गया। इतने पर भी स्वयंसेवक ने परवाह नहीं की और वह यही कहता रहा कि शराब मत खरीदो। ____एक आदमी शराब पीने वालों को रोकने के लिए जान देने को तत्पर होता है और दूसरा शराब पीने के लिए दूसरे की जान लेने को तत्पर होता है। अब देखना यह है कि इस अन्तर का कारण क्या है ? मूल की तरफ देखें तो प्रतीत होगा कि एक को ज्ञान है और दूसरे को अज्ञान है। एक तृष्णा के कारण आत्मविस्मृत है और दूसरा अपने प्राण देकर भी उसकी तृष्णा को रोकना उचित समझता है। इस प्राण देने वाले को कौन बुरा कह सकता है ?
'मूर्ख !'
बहुत-से ऐसे लोग भी मिलेंगे जो प्राण देने वाले को ही मूर्ख कहेंगे । गीता में कहा है
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागति संयमी ।
यस्या जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ भानी लेग जिसे मूर्ख कहते है, उसे प्रशानी बुद्धिमान् Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com