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[ जवाहर - किरणावली
दे दी । इधर राजा ने आज्ञा दी और उधर प्रधान के किसी हितैषी ने प्रधान को राजाज्ञा संबंधी सूचना देकर कहा'गिरफ़्तारी में देर नहीं है । इज्ज़त बचाना हो तो निकल भागो ।'
प्रधान अपनी आबरू बचाने के उद्देश्य से घर से बाहर तो निकल पड़ा मगर सोच-विचार में पड़ गया कि अब कहाँ जाऊँ ? और किसकी शरण लूँ ? अन्त में उसने सोचा- मेरे तीन मित्र हैं। तीन में से कोई तो शरण देगा ही । मगर मेरा पहला अधिकार नित्य मित्र पर है । पहले उसके पास ही जाना योग्य है ।
प्रधान आधी रात और अंधेरी रात में नित्य मित्र के घर पहुँचा । किवाड़ खटखटाए । मित्र ने पूछा- कौन है ? प्रधान ने दबी आवाज़ में कहा - धीरे बोलो धीरे ! मैं तुम्हारा मित्र हूँ !
मित्र - मैं कौन ?
प्रधान - तुम तो मुझे स्वर से ही पहचान लेते थे । क्या इतनी जल्दी भूल गये ? मैं तुम्हारा मित्र हूँ ।
मित्र - नाम बताओ ?
प्रधान - अरे ! नाम भी भूल गये ! मैं प्रधान हूँ ।
मित्र ने किवाड़ खोलकर आधी रात के समय आने का कारण पूछा । प्रधान ने राजा के कोप की कथा कहकर कहायद्यपि मैं निरपराध हूँ; मगर इस समय मेरी कौन सुनेगा ? इसीलिए मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ। आगे जो होगा, देखा
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