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बीकानेर के व्याख्यान ]
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निर्माण किया है ?.इस बात पर विचार कर । ___ मान लो कि आपके पास एक वस्तु ऐसी है जो दाहिने हाथ में लेने पर रत्न बन जाती है और बायें हाथ में लेने पर कोयला हो जाती है । आप उस वस्तु को किस हाथ में लेना पसंद करेंगे?
'दाहिने हाथ में !'
एक वस्तु दाहिने हाथ में लेने पर फूल की छड़ी हो जाती है और बायें हाथ में लेने पर काली नागिन बन जाती है । आप उसे किस हाथ में लेंगे? 'दाहिने में !'
प्रत्येक आत्मा में ऐसी शक्ति विद्यमान है कि वह श्रेष्ठ से श्रेष्ट वस्तु को कनिष्ठ वना सकती है और कनिष्ठ से कनिष्ठ वस्तु को श्रेष्ठ बना सकती है।
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली। अप्पा कायदुहा धेणू , अप्पा मे वंदणं वणं ॥ अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्त च, दुप्पट्ठिय सुपट्टिो |
-उत्तरा० अ० २०१ अर्थात् मेरी आत्मा वैतरणी नदी है, आत्मा ही कूटशाल्मलि वृक्ष है, अात्मा ही कामधेनु है और प्रात्मा ही नन्दन वन है । सुखों और दुःखों का कर्ता और हर्ता भी आत्मा ही
है। सन्मार्गगामी आत्मा ही मित्र है और कुमार्गगामी आत्मा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com