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बीकानेर के व्याख्यान ]
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को शांति तो दे सकते हैं ? प्रत्येक श्वासोच्छ्वास में पाप लगता है। इसका बदला श्राप किस प्रकार चुकाते हैं ?
मतलब यह है कि आपको जो इंद्रियाँ प्राप्त हैं उनका आप जैसा चाहें वैसा उपयोग कर सकते हैं। प्रत्येक इंद्रिय का बुरा उपयोग भी हो सकता है और अच्छा उपयोग भी हो सकता है। आप अपने कानों से उत्तम पुरुषों के वचन भी सुन सकते हैं, अपना अन्तर्नाद भी सुन सकते हैं। इससे आपकी आत्मा सुप्रतिष्ठित होगी। यदि ऐसा न करके दूसरों की निन्दा और विकथा सुनने में कानों का उपयोग किया तो
आपकी आत्मा दुःप्रतिष्ठित हो जायगी । जिनके कान सामायिक के समय भी ठिकाने नहीं रहते, समझना चाहिए कि उन्होंने आध्यात्मिक स्थिति नहीं पाई है। इस प्रकार जब आप फूल की छड़ी बना सकते हैं तो नागिन क्यों बनाते हैं ? आपकी आत्मा में जो शक्ति है वह अनन्त पुण्य का निर्माण कर सकती है, फिर उसे अाप घोर, पाप के निर्माण में क्यों लगा रहे हैं ?
इन्हीं आँखों से संत-महात्माओं को देख सकते हो और इन्हीं से वेश्या का शृङ्गार भी देख सकते हो। सोचो कि किसके देखने में तुम्हारा हित है ? और किसके देखने से प्रात्मा का पतन होता है ? मित्रो ! आत्मा को वैतरणी मत बनाओ, कामधेनु बनाओ। हां, अगर वेश्या को देखकर हृदय में यह विचार
आता हो कि यह भी मेरी माता है तो बात दूसरी है । ऐसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com