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बीकानेर के व्याख्यान]
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है और दूसरा पिश्ते की बर्फी खाता है। इन दोनों में से किसे अधिक दाम देते होंगे?
'पिश्ते की चक्की वाले को !' __ इसी प्रकार खाना मात्र पराया है । अतएव खाना खाकर अपने कर्तव्य को भूल न जाओ। माथे पर जो ऋण • ले रहे हो, उसे चुकाने की भी चिन्ता रक्खो और यथाशक्ति चुकाते चलो। अगर तुम साधु हो तो वास्तविक साधुता प्राप्त करो और अगर श्रावक हो तो सच्चे श्रावक के गुण प्राप्त . करो। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भोजन करने की भावना रक्खो और अडबंड खाना छोड़ो।
श्रावक मांस और मदिरा का सेवन नहीं करता। क्यों? इसीलिए कि इन वस्तुओं के खान-पान से प्रकृति सात्विक नहीं रहेगी और खाता इतना भारी हो जायगा कि उसका चुकता करना कठिन हो जायगा। __ साधु तो दूसरों के घर से आहार लाते हैं पर श्रावक अपने घर का खाते हैं। वह सोच सकते हैं कि हम अपनी कमाई खाते हैं । पराई कमाई नहीं खाते । मगर उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि उनकी कमाई क्या है ? ज़रा अपनी कमाई का विचार तो करो! तुम ऐसी कौन-सी चीज़ अपने हाथ से उत्पन्न करते हो, जिससे तुम्हारी या दूसरों की जीवन संबंधी आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति होती हो ? - किसान को ऐसा कहने का अधिकार हो सकता है, क्योंकि वह मिट्टी में से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com