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[जवाहर-किरणावली
एक दृष्टान्त देकर कहा-तुम प्रेम दिखलाती हो, मगर सच्ची मित्रता यह नहीं है। ऊपरी सांसारिक व्यवहार को देखकर ही यह नहीं समझा जा सकता कि सच्चा मित्र कौन है ? इस विषय में एक दृष्टान्त सुनो ।
एक राजा का प्रधान था। राजा उसका खूब अादरसत्कार करता था। प्रधान विवेकवान् था। उसने विचार किया
राजा जोगी अगनि जल, इनकी उलटी रीति ।
बचते रहियो परसराम, थोड़ी पाले प्रीति ॥ अतएव सिर्फ राजा के प्रेम पर निर्भर रहकर किसी दूसरे को भी अपना मित्र बनाये रखना उचित है। मित्र होगा तो समय पर काम पायगा।
इस प्रकार विचार कर प्रधान ने एक नित्य मित्र बनाया। प्रधान अपने इस मित्र के साथ ही खाता, पीता और रहता था । वह समझता था कि नित्य मित्र भी मेरा आत्मा है । इस प्रकार प्रधान अपने मित्र को बड़े प्रेम से रखने लगा। _____एक मित्र पर्याप्त नहीं है, यह विचार कर प्रधान ने दूसरा मित्र भी बनाया। यह मित्र पर्व मित्र था। किसी पर्व या त्यौहार के दिन प्रधान उसे बुलाता, खिलाता-पिलाता और गपशप करता था। प्रधान ने एक तीसरा मित्र और बनाया जो सैन-जुहारी मित्र था । जब कभी अचानक मिल गया तो जुहार उससे कर लिया करता था । इस प्रकार प्रधान ने तीन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com