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[जवाहर-किरणावली
कर उसे बंद कर देने से ही दुखों का अन्त आता है। दुःखां का आद्य स्त्रोत आत्मा का विकारमय भाव है। इस प्रकार आत्मा ही दुःखां का कर्ता और संहर्ता है।
तोता पकड़ने वालों के विषय में सुना जाता है कि वे जंगल में एक गिरी लगाते हैं। तोता आकर उस पर बैठ जाता है । तोते के बैठने पर गिरीं घूमने लगती है। तोता यह समझ कर कि यदि मैं गिरी को छोड़ दूंगा तो गिर जाऊँगा, गिरी को और मज़बूती के साथ पकड़ता जाता है । ज्यों-ज्यों वह मज़बूती के साथ गिरी को पकड़ता है, गिरी अधिकअधिक तेजी के साथ घूमती जाती है । अगर तोता अपने पंखों के बल को याद करके गिरी को छोड़ दे तो वह उड़ जाय
और गिरी का घूमना भी बंद हो जाय । मगर वह अपने पंखों का बल भूल जाता है और गिरी पर बैठा हाय-हाय करता रहता है। परिणाम यह होता है कि उसे बन्धन में पड़ना पड़ता है।
गिरी की तरह ही यह संसार घूम रहा है । इस घूमते हुए संसार को पकड़ कर इसके साथ ही प्रात्मा भी चक्कर खा रहा है। आत्मा संसार को दोष देता है मगर यह क्यों नहीं सोचता कि संसार को पकड़ किसने रक्खा है ? आत्मा ने ही संसार को पकड़ रक्खा है, इसी कारण वह संसार के साथ घूम रहा है। जिस दिन वह संसार का आसरा छोड़ देगा उसी दिन उसे आनन्द का लाभ होगा और विग्रह शांत
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