________________
[ जवाहर-किरणावली
नहीं, राजा ही मर जायगा। वह तलवार सँभालकर छाया-- रूपी साँप को मारने के लिये तैयार हुआ। ___ मूर्ख मित्र की बदौलत राजा के प्राणपखेरू उड़ने में देरी नहीं थी। विद्वान् खड़ा-खड़ा यह सब देख रहा था । उसने सोचा-'इस मूर्ख मित्र के कारण वृथा ही राजा की जान जा रही है। चाहे में पकड़ा जाऊँ और मारा जाऊँ मगर राजा को बचाना ही चाहिए। अपनी आँखों के आगे राजा का वध मैं नहीं होने दूंगा!" यह सोचकर विद्वान् एकदम झपट पड़ा
और उसने बन्दर की तलवार पकड़ ली । बन्दर और विद्वान् में झगड़ा होने लगा। इतने में राजा की नींद खुल गई । वह हड़बड़ा कर उठा और बन्दर तथा विद्वान् की खींचतान देखकर और भी विस्मित हुआ। राजा के पूछने पर विद्वान् ने कहा-यह बन्दर आपके प्राण ले रहा था पर मुझसे यह नहीं देखा गया। इसी कारण झपट कर मैंने तलवार पकड़ ली है।'
राजा-तू कौन है ? विद्वान्-मैं ? मैं चोर हूँ ! राजा-बन्दर मुझे कैसे मार रहा था ? विद्वान्-आप सो रहे थे और मैं चोरी करने की ताक में आया था। छत पर साँप पाया। उसकी छाया आपके शरीर पर पड़ी। छाया को साँप समझ कर यह बन्दर तलवार
चलाने को उद्यत हुआ। मुझसे यह नहीं देखा गया। मैंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com