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[ जवाहर-किरणावली
आज मैं आपका अात्मसाक्षी बनकर आपकी ओर से अापकी निदा करता हूँ। मैं पूछता हूँ कि आप जिन आलीशान हवेलियों का गर्व करते हैं, उन्हें आपने बनाया है ? अगर उनका एक भी पत्थर खिसक जाय तो उसे भी आप नहीं जमा सकते । फिर गर्व का आधार क्या है ? इस तरह दूसरों के बनाये नकान में रहना परतंत्रता है-गुलामी है। इसमें स्वतन्त्रता कहाँ है ?
बहिनें बँगड़ियाँ पहन कर हाथ कड़ा रखती होंगी, लेकिन मैं पूछता हूँ कि बँगड़ी में से एक भी मोगरा निकल जाय तो क्या वे उसे बना कर जड़ सकती हैं ? अगर नहीं जड़ सकतीं तो गर्व किस विरते पर ! यों तो गौरैया (गौरगौरी) पुतली को भी गहने पहनाये जाते हैं, लेकिन वह क्या गर्व कर सकती है? वह गर्व कैसे करे ? उसे तो दूसरों ने गहने पहनाये हैं। इसी प्रकार जो बहिनें दूसरों के दिये कपड़े पहनती हैं वे भी कैसे गर्व कर सकती हैं । बहिनो! आप अपनी आत्मा को ऐसी शिक्षा दीजिए कि वह पुकार उठे-'हे आत्मा ! तुझे धिक्कार है, जो तू दूसरों की दी हुई वस्तुओंपर गर्व करती है !' . ___ कपड़ा बनाने वाला दूसरा, सिलाई करने वाला दूसरा और धोने वाला दूसरा है। ऐसी दशा में पहनने वाला गर्व क्यों करता है ! अगर तुम्हारे लिए काम करने वाले लोग अपना-अपना काम बन्द कर दें तो कैसी बीतेगी ? जब तुम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com