________________
बीकानेर के व्याख्यान ]
[ १५१
उनकी कल नहीं जानते तो उनके काम बन्द कर देने पर रोना स्वाभाविक हैं । बहिनें जो कपड़ा पहनती हैं उनमें क्या एक भी ऐसा है जो उनका खुद का बनाया हो ?
'नहीं !'
पहले की रानियाँ चौंसठ कलाओं में निपुण होती थीं । वें शस्त्र बाँधकर लड़ने नहीं जाती थीं लेकिन किसी ऐसी चीज़ का उपयोग भी नहीं करती थीं. जिसे बनाना उन्हें न आता हो । वे नये-नये कला कौशल निकाल कर अपने वस्त्राभूषण सजाया करती थीं। आज की स्त्रियाँ यह सब कहाँ करती हैं ? दर्जी मशीन से बेलवूटे निकाल देता है और ये पहनकर अभिमान करती हैं कि ऐसी चीज़ उसके पास नहीं है, मेरे पास है ! लेकिन बहिनो ! जरा विचार करे। कि तुम्हारा क्या है जिस पर तुम गर्व करती हों !
भाइयो! आप मुझे अपना धर्मगुरु मानते हैं । इसलिए मैं कहता हूँ आप अभिमान का त्याग करें। मैं आपको निरभिमान देखना चाहता हूँ। चक्रवर्ती भी, जो स्वयं कपड़ा बनाने की कला में कुशल होते थे, कपड़ों का अभिमान नहीं करते थे; तो आप जो कपड़ा बनाना ही नहीं जानते, कैसे श्रभिमान कर सकते हैं ! प्रत्येक वस्तु का उपयोग करते समय यह विचार कर लो कि यह वस्तु मैंने बनाई है या नहीं । और साथ ही यह सोच लो कि जब मैंने नहीं बनाई है तो फिर अभिमान कैसा ?
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com