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जवाहर - किरणावली
अगर साधु ऐसा समझलें या कहें तो समझना चाहिए कि वे दंभ और अहंकार से घिरे हैं। उन्हें विचारना चाहिए कि हम महापुरुष के ग्रन्थ पर जा रहे हैं और दूसरों से भी वे यही कहें कि हम महापुरुष के पंथ पर चल रहे हैं । तुम्हारी इच्छा हो तो तुम भी इसी पन्थ पर श्री जाओ । यह पन्थ हमारा नहीं है, महापुरुषों का है। महापुरुष इसी पन्थ पर चले हैं और जगत् के जीवों को इसी पर चलने की प्रेरणा कर गये हैं। साधु अगर ऐसा समझें और प्रकट करें तो समझना चाहिए कि वे सच्चे साधक हैं ।
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