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बीकानेरके व्याख्यान ]
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खाली हाथ तो आ जा सकता है, मगर मुट्ठी बँधा हाथ न घुस सकता है और न निकल सकता है । बन्दर मुट्ठी में चने लेकर हाथ निकालना चाहता है किन्तु हाथ निकलता नहीं। अगर बन्दर चनों का प्रलेाभन त्याग दे तो हाथ छुड़ा सकता है, अन्यथा नहीं। इस प्रकार बन्दर चनों के लोभ में पड़कर अपने लिए बंधन का निर्माण कर लेता है। वह चना छोड़ना नहीं चाहता और इसी कारण वंधन से मुक्त भी नहीं हो सकता। वह तड़फड़ाता रहता है और पकड़ने वाले उसे पकड़ लेते हैं।
इसी प्रकार संसारी जीव स्वयं ही सांसारिक सुख-साधनों के प्रलोभन में पड़कर अपने लिए बंधन तैयार करते हैं । इसी तरह साधुवेषधारी असाधुओं में भोगविलास की लालसा विद्यमान रहती है। जैसे बन्दर चनों का त्याग नहीं कर सकता उसी प्रकार वे साधुवेषधारी असाधु भोगलालसा का त्याग नहीं कर सकते । मगर जैसे बन्दर पात्र से छुटकारा चाहता है उसी प्रकार वे भी आत्मा का कल्याण चाहते हैं। लेकिन जैसे बन्दर चनों का लोभ छोड़े विना छुटकारा नहीं पा सकता, उसी प्रकार साधु हो जाने पर भी संसार की भोगलालसा का त्याग किये बिना मुक्ति नहीं मिल सकती।
बड़े-बड़े ग्रंथकार कह गये हैं कि इस विषम काल में महापुरुषों के पन्थ पर चलना ही कल्याणकारी है। तोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विमिया
को मुनियस्व व प्रमाणम् ।
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