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बीकानेर के व्याख्यान ]
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आज के लोग श्रावक कहलाते हुए भी स्वतंत्र रहने में कठिनाई का अनुभव करते हैं । ___ भगवान् अनाथी मुनि ने यही कहा था कि नाथ बनकर किसी काम को करना एक बात है और गुलाम बन कर करना दूसरी बात है। नाथ बनकर साधुधर्म का पालन करना और बात है और गुलाम बनकर सिर्फ दिखाने के लिए पालन करने का ढोंग करना और बात है।
सेठ और मुनीम का जो उदाहरण दिया गया है वह भाई-भाई और पिता-पुत्र आदि के लिए भी लागू होता है। धर्मात्मा पुरुष किसी के साथ दगा नहीं करता। वह प्राण देने को तैयार हो जाता है पर अपना धर्म नहीं छोड़ता। धर्म को वह प्राणां से ज्यादा प्यारा समझता है। धर्म उसके लिए परम कल्याणमय होता है। वह समझता है कि मैं नास्तिक नहीं, आस्तिक हूँ। अात्मा अमर है। मैं अनन्त काल तक रहने वाला हूँ। इसलिए थोड़े समय तक रहने वाली तुच्छ चीज़ के लोभ में पड़कर में धर्म का परित्याग नहीं कर सकता। इस प्रकार विचार करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है।
राम और लक्ष्पण भाई-भाई थे तो क्या राम अकेले वन चले जाते और लक्ष्मण घर बेठे मौज करते रहते ? सीता, राम की पत्नी होकर भी क्या राजमहल के सुख भोगती रहती ? धर्म की कमोदी संकट के समय ही होती है। बल्कि संकट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com