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बीकानेर के व्याख्यान ]
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सेठ के सामने रख दिया । सेठ समझ गया । उसने सू भरकर कहा - मुनीमजी, रुपया तो देना है, लेकिन इस घर की दशा आपसे छिपी नहीं है। मैं क्या कहूँ ?
मुनीम ने कहा- आप दुखी न हों। मैं स्थिति से परिचित हूँ। अगर मैं ने अपने नये सेठजी को वहीं उत्तर दे दिया होता तो ठीक न रहता। इसी विचार से मैं यहाँ तक आया हूँ ।
बहीखाता लेकर मुनीमजी लौट आये। सेठ के पूछने पर उन्होंने कहा- खाते में रकम ज्यादा वकाया है । अभी चुकता कर देने की उनकी शक्ति नहीं है । कभी उनके दिन पलटेंगे तो चुका देंगे । वे हज़म करने वाले आसामी नहीं है ।
कारण आप उनकी
उनका रुख रखना
सेठ बोला- पहले के सेठ होने के खुशामद करते हैं । हमारे नौकर होकर उचित नहीं है । इतना बड़ा घर था । विगड़ जाने पर भी गहने- वर्तन आदि तो होंगे ही। अगर सीधी तरह नहीं देना चाहते तो दावा करके वसूल करो ।
मुनीम - मैं जानता हूँ कि उनकी आमदनी ऐसी नहीं है । किसी प्रकार अपना निर्वाह कर रहे हैं और इज्ज़त लेकर बैठे हैं। उनकी आबरू विगाड़ना मेरा काम नहीं है। मैं तो आपकी और उनकी इज्ज़त बराबर समझता हूँ ।
कुछ कठोर पड़ कर सेठ ने कहा- जिसे रोटी की गरज़ होगी उसे किसी की आबरू भी विगाड़नी पड़ेगी ।
मुनीम ने यह बात सुनी तो चाबियों का गुच्छा सेठजी
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