SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीकानेर के व्याख्यान ] [ १३३ सेठ के सामने रख दिया । सेठ समझ गया । उसने सू भरकर कहा - मुनीमजी, रुपया तो देना है, लेकिन इस घर की दशा आपसे छिपी नहीं है। मैं क्या कहूँ ? मुनीम ने कहा- आप दुखी न हों। मैं स्थिति से परिचित हूँ। अगर मैं ने अपने नये सेठजी को वहीं उत्तर दे दिया होता तो ठीक न रहता। इसी विचार से मैं यहाँ तक आया हूँ । बहीखाता लेकर मुनीमजी लौट आये। सेठ के पूछने पर उन्होंने कहा- खाते में रकम ज्यादा वकाया है । अभी चुकता कर देने की उनकी शक्ति नहीं है । कभी उनके दिन पलटेंगे तो चुका देंगे । वे हज़म करने वाले आसामी नहीं है । कारण आप उनकी उनका रुख रखना सेठ बोला- पहले के सेठ होने के खुशामद करते हैं । हमारे नौकर होकर उचित नहीं है । इतना बड़ा घर था । विगड़ जाने पर भी गहने- वर्तन आदि तो होंगे ही। अगर सीधी तरह नहीं देना चाहते तो दावा करके वसूल करो । मुनीम - मैं जानता हूँ कि उनकी आमदनी ऐसी नहीं है । किसी प्रकार अपना निर्वाह कर रहे हैं और इज्ज़त लेकर बैठे हैं। उनकी आबरू विगाड़ना मेरा काम नहीं है। मैं तो आपकी और उनकी इज्ज़त बराबर समझता हूँ । कुछ कठोर पड़ कर सेठ ने कहा- जिसे रोटी की गरज़ होगी उसे किसी की आबरू भी विगाड़नी पड़ेगी । मुनीम ने यह बात सुनी तो चाबियों का गुच्छा सेठजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034899
Book TitleJawahar Kirnawali 19 Bikaner ke Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year1949
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy