________________
१३६ ]
को ही धर्म की कसौटी समझना चाहिए ।
यह बात पहले तो मुनियों और सतियों को सोचनी चाहिए। उन्होंने माता-पिता का त्याग कर दिया है लेकिन क्या संसार के जीव अनन्त - अनन्त बार माँ-बाप न हो चुके होंगे ? वह मुनीम अपने पुराने सेठ की आबरू नहीं विग - ड़ना चाहता । तो क्या अपने पुराने माँ-बाप की आबरू बिगाड़ना उचित है ? लेकिन जब आत्मा का पतन होता है तो छह काय की दया उठ जाती है । मगर जो मनुष्य यह विचार करता है कि विश्व के समस्त प्राणी मेरे पुराने मित्र हैं, संबंधी हैं, सेठ हैं, वह प्राणी मात्र पर दया और प्रेम की भावना रखता है । वह त्रिकाल में कभी अनाथ नहीं होगा ।
[ जवाहर - किरणावली
X
X
X
X
एक बार गृहस्थी का त्याग करके, साधु होकर फिर अनाथ अर्थात् इन्द्रियों का गुलाम बन जाता है, वह निरर्थक कष्ट मोल लेता है । इतना ही नहीं, वह अपनी श्रात्मा को नीचे गिराता है, अपने संघ की उज्ज्वल कीर्ति को कलंकित करता है और अपने धर्म को बदनाम करता है ।
सुना है, बन्दर को पकड़ने बाले लोग उसे पकड़ने के लिए जंगल में किसी लोहे के या लकड़ी के पात्र में, जिसका मुँह लकड़ा होता है, चने भर देते हैं। बन्दर उस पात्र में चने लेने के लिए हाथ डालता है और चनों से मुट्ठी भर लेता है। पात्र का मुँह इतना संकड़ा होता है कि उसमें
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com