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[जवाहर-किरणावली
बुला लाने के लिए मुझ से कहा । मैं घर से चला। रास्ते में कुछ बालक कौड़ियों और पैसों का खेल खेल रहे थे । मैं वहाँ खड़ा हो गया और खेल देखने लगा। मैं किसलिए' घर से निकला हूँ, यह बात बिलकुल भूल गया। पारणा करके घर से निकला था। खाने पीने की चिन्ता नहीं थी। खेल में मेरा मन इतना उलझ गया कि मध्याह्न हो गया और धीरे-धीरे करीब दो बजे का समय हो गया। खेल खत्म हुआ तवं मामाजी की बात याद आई। मामाजी स्वभाव के बड़े क्रोधी थे। अतएव मुझे बहुत भय हुआ कि न जाने कैसी बीतेगी।
सारांश यह है कि जो जिस काम के लिए उठा है, उसे अगर पूरी तरह नहीं करता है तो स्थिति विषम हो जाती है। वह लक्ष्यभ्रष्ट होकर कष्ट ही पाता है। इसलिए ऐ साधुओ, तुम सावधान होश्रो। तुमने जिस महान् ध्येय को प्राप्त करने के लिए संसार के सुखों का परित्याग किया है, जिस सिद्धि के लिए तुम अनगार, अकिंचन और भिक्षु हुए हो, उस ध्येय को क्षण भर भी मत भूलो। उसकी पूर्ति के लिए निरन्तर उद्योगशील रहो । तुम्हारा प्रत्येक कार्य उसी लक्ष्य की सिद्धि में सहायक होना चाहिए। ___ जो मनुष्य अपने लक्ष्य को भूल जाता है उसका सारा कष्ट सहन निरर्थक हो जाता है और उसका कहनाभी असत्य हो जाता है कि मैं अमुक कार्य के लिए उठी हूँ। कोई प्रादमी धन कमाने के लिए उठा और अपनी लापरवाही के कारण
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