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लक्ष्यभ्रष्ट न होओ
--:::()::-- भगवान् अनाथी मुनि ने राजा श्रेणिक से कहा-राजन् ! कई लोग नाथ होने के लिए उद्यत होकर भी इंद्रियों के या कषाय के वश होकर सांसारिक पदार्थों में गृद्ध हो जाते हैं और परिणाम यह होता है कि वे फिर अनाथ हो जाते हैं। उनकी साधु बनने की रुचि निरर्थक हो जाती है, क्ष्योंकि उसका मुख्य प्रयोजन नष्ट हो जाता है। जो साधु के प्राचारविचार से विरुद्ध चलता है फिर भी साधु का वेष धारण किये रहता है, वह प्राणी पामर है। ऐसा मनुष्य इस लोक के सुखों से भी वञ्चित रहता है और परलोक के सुखों से भी कोरा रह जाता है।
वह इस लोक के सुखों से वंचित यों रह जाता है कि लोकलज्जा के मारे उसे केशलोंच करना पड़ता है, मंगे पैर पैदल चलना पड़ता है और भिक्षाटन प्रादि बाह्य क्रियाएँ साधुओं की ही तरह करनी पड़ती हैं। मतलब यह है कि
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