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बीकानेर के व्याख्यान ]
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तुलसीदासजी ने शंभु और ब्रह्मा की बात कही है और हम लोग कह सकते हैं कि सीता को दिये बिना अर्हन्त भी हित न करेंगे। रावण अगर सीता को लौटा देता तो उसे भजन से आनन्द मिलता। लेकिन उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया । इसी प्रकार आपने जो भक्ति की होगी उसमें कोई कारण ऐसा होगा जो परमात्मा को पसंद नहीं होगा। इसलिए शुद्ध अन्तःकरण से, दूसरे के हिताहित का ध्यान रखते हुए परमात्मा का ध्यान करो। ऐसा करने से अपूर्व आनन्द प्राप्त होगा।
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