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[ जवाहर-किरणावली
पूजित हैं। ज्ञानी जन उनके पथ का ही अनुसरण करते हैं। उन्होंने अपने समस्त कर्मों का नाश कर डाला है। वीर भगवान् से ही इस तीर्थ की प्रवृत्ति हुई है । वीर भगवान् का तप घोर था। उनमें अद्भुत श्री, अनोखा धीरज और अनुपम कांति थी। उनकी कीर्ति का वर्णन नहीं किया जा सकता। ऐसे श्रीवीर भगवान हमारी रक्षा करें।
भगवान् जिस-जिस अवस्था में रहे, उस-उस अवस्था में इन्द्र ने उनकी पूजा की। भगवान् के गर्भकल्याणक के समय इन्द्र ने उत्सव मनाया। जन्मकल्याण के समय मेरु पर्वत पर जाकर उत्सव किया। दीक्षा लेने पर उसने दीक्षामहोत्सव किया।
भगवान् ने घोर तप करके कर्मों का विनाश कर डाला। उनके तप का ही यह प्रभाव है कि भगवान् का शासन अब तक चल रहा है। धर्म के नाम पर संसार में अनेक सत्ताएँ हो चुकी हैं, जिन्होंने राजाओं का भी प्राश्रय मिला था। अर्थात् राजा भी उनकी आज्ञा में थे। राजाओं का आश्रय पाकर भी आज उन धर्मों का ह्रास हो गया है। जैनधर्म का रक्षक कोई राजा नहीं है, फिर भी वह अपने पैरों पर खड़ा है। इसका कारण भगवान् की तपस्यां ही है। उन्हीं के तप के प्रबल प्रभाव से अनेक भीषण संघर्षों में जैनधर्म ने विजय प्राप्त की है और आज भी वह विजयशील है। दुनिया जैनधर्म के सिद्धांतों के अमल में ही अपनी भलाई देख रही है।
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