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बीकानेर के व्याख्यान ]
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फुलांबाई के व्यवहार को सहन करते गये और उसे क्षमा करते रहे । उनकी क्षमा का फूलांबाई ने ठाकुरजी का अपने ऊपर विशेष अनुग्रह समझा । उसका व्यवहार दिन प्रतिदिन बुरा होता चला गया ।
फूलों की सुसराल के किसी सम्बन्धी के घर विवाह था । उस विवाह में सपरिवार सम्मिलित होना आवश्यक था । बहू के भी साथ ले जाना जरूरी था । मगर चिन्ता यह थी कि अगर पराये घर जाकर भी इसने ऐसा व्यवहार रक्खा तो इतनी बड़ी इज्ज़त कौड़ी की हो जायगी । अन्त में बहू को घर पर ही छोड़ जाने का निश्चय किया गया । मगर फूलांबाई को छोड़ जाना भी सरल नहीं था । इसलिए उसकी सास ने एक उपाय सोच लिया ।
मूर्ख लोग अपनी मिथ्या प्रशंसा से प्रसन्न होते हैं । उन्हें प्रसन्न करके फिर जो चाहे वही काम करा सकते हो । वे खुशी-खुशी कर देंगे। सासू ने फूलांबाई की खूब प्रशंसा की । अपनी प्रशंसा सुनकर वह फूल गई । उसके बाद सासू ने कहा - इस विवाह में जाना तो सभी को चाहिए, पर घर सूना नहीं छेड़ा जा सकता। बड़ा घर है । इसे सँभालने के लिए होशियार आदमी चाहिए। तुम बहुत होशियार हो । अगर घर रद्द कर इसे संभाले रहो तो सब ठीक हो जाएगा ।
फूलबाई फूलकर कुप्पा हो चुकी थी । उसने कहातुम्हारे बिना कौन-सा काम अटका है ? तुम सब पधारो । घर
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