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बीकानेर के व्याख्यान ]
[१०७
आपने मुझे सच्ची शिक्षा दी है। सब से पहले आप ही मेरा अपराध क्षमा कीजिए । अपराध रहने से ठाकुरजी न रहेंगे तो मैं अपराध रहने ही नहीं दूंगी। फिर ठाकुरजी कैसे जा सकेंगे? ___ मेहमान-आपने मुझसे जो कुछ कहा है, उससे मुझे दुःख नहीं हुआ। परन्तु जो अशक्त हैं और धर्म को नहीं जानते हैं. उनसे क्षमा मांगो । इसी में आपका कल्याण है। में तो आपके क्षमा मांगने से पहले ही क्षमा कर चुका हूँ। __प्रातःकाल होते ही फूलांबाई ने सब से क्षमा मांगी। पड़ौसियों, नौकरों-चाकरों से बड़े प्रेम के साथ वह मिली और अपने अपराधों के लिए पश्चात्ताप करने लगी। उसने कहाआप सब लोग अब तक मुझ से दुखी हुए हैं। आपने मेरे कठोर-व्यवहार को शान्ति के साथ सहन किया है । एक बार
और क्षमा कर दीजिए। ___ अगर फूलांबाई का मेहमान उसकी बातें सुनकर क्रोधित हो जाता तो फूलांबाई का सुधार हो सकताथा? नहीं। वास्तव में क्षमा बड़ा गुण है । क्षमा के द्वारा सब का सुधार किया जा सकता है।
विवाहकार्य से निवृत्त होकर फूलां के घर के लोग जब लौटे तो फूलां प्रांखों से जल बरसाती हुई सब के पैरों में पड़ी
और अपने अनेक अपराधों के लिए क्षमा मांगने लगी ! वह कहने लगी-आप मुझे क्षमा कर देंगे तभी ठाकुरजी रहेंगे,
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