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बीकानेर के व्याख्यान ]
का सा व्यवहार करने लगी ।
फुलां बाई की सगाई एक करोड़पति सेठ के घर की गई । यह देख कर तो फूलांबाई के अभिमान का पार ही न रहा । वह सोचने लगी- मुझ पर ठाकुरजी की बड़ी कृपा है । यही कारण है कि इस घर में मैंने सभी पर अंकुश रक्खा है, फिर भी मैं करोड़पति के घर ब्याही जा रही हूँ ! जैसी धाक मैंने यहाँ जमा रक्खी है. वैसी ही सुसराल में जमा सकूँ तो ठाकुरजी की पूरी कृपा समझैं ।
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विवाह हो गया । फुलांबाई सुसराल पहुँची । सुसराल पहुँचकर ससुर - सासू के पैर छूना आदि विनीत व्यवहार तो दूर रहा. उसने अपनी दासी को सासू के पास भेजकर कहला दिया- 'अभी से यह बात साफ़ कर देना ठीक जँचता है कि मैं इस घर में गुलाम या दासी बन कर नहीं आई हूँ । मैं मालकिन बनकर आई हूँ और मालकिन बनकर ही रहूँगी । अपने साथ मैं धन लेकर आई हूँ, कोरी नहीं आई हूँ । सब काम-काज मेरे कहने के अनुसार होता रहा तो ठीक, अन्यथा इस घर में तीन दिन भी मेरा निर्वाह न होगा ।'
फुलांबाई सोचती थी- ठाकुरजी प्रसन्न हैं तो फिर डर किसका ? आरंभ में प्रभाव जम गया तो जम गया, नहीं तो जमना कठिन है । इसलिए पहले ही आतंक जमा लेना चाहिए | डर-भय की तो परवाह ही नहीं है !
नवागता पुत्रवधू का यह अनोखा संदेश सुनकर सासू
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