________________
१६]
[जवाहर-किरणावली
बाई बन गई।
पहले कहा जा चुका है कि उस घर के सभी लोग सभी बातों के लिए ठाकुरजी का ही प्रताप समझते थे। घर में जो भावना फैली होती है उसी को बालक ग्रहण करते हैं और वैसी ही भावना बन जाती है। फूलीबाई की भावना भी ऐसी ही हो चली। वह भी हर चीज़ को ठाकुरजी का प्रताप समझने लगी । सेठजी के यहाँ यह भजन गाया जाता था
जो ले उसको रूठन दे, तू मत रूले मन बेटा ।
एक नारायण नहिं रूठे तो, सबके काट लूं चोटी पटा ।। फूलांबाई ने इस भजन का यह आशय समझ लिया कि सब लोग रूठते हैं तो परवाह नहीं। उन्हें रूठ जाने दो ! अगर.ठाकुरजी अकेले न रूठे तो सब के सिर के बाल उतरवा सकती हूँ।
फूसां बाई ने सोग-दुनिया में बहुत लोग हैं । किनकिन की अलग-अलग खुशामद करती फिरूँगी ! अतएव अच्छा यही है कि अकेले नारायण को राजी कर लिया जाय । फिर चाहे जिससे चाहे जैसा व्यवहार किया जा सकता है।
फूलों वाई के ऐसे व्यवहार को घर के लोग हँसी में टालते रहे, मगर फूलां बाई समझने लगी कि यह सब नारायण भगवान् का ही प्रताप है। नारायण मददगार हो तो कोई क्या कर सकता है ? इस प्रकार फलां बाई सबके. साथ शूल
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com