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बीकानेर के व्याख्यान]
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जैसा होने वाला होता है वैसे ही निमित्त भी मिल जाते हैं । तदनुसार सेठ के यहाँ एक दिन कोई पंडित आये और उन्होंने गीता का निम्नलिखित श्लोक पढ़ा
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेक शरणं बज ।
अहं त्वां सर्वपापेम्यो मोनयिष्यामि सा शुचः ॥६६|| फूलां बाई इसका अर्थ समझी-सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ। तुमने कितने ही पाप क्यों न किये हों, मैं उन सब से मुक्त कर दूंगा। अब उसने निश्चय कर लिया-नारायण पापों से मुक्त कर ही देते हैं, फिर किसी भी पाप से डरने की आवश्यकता ही क्या है ? पाप से डरने का अर्थ नारायण की शक्ति पर अविश्वास करना होगा । बस, केवल ईश्वर से डरना चाहिए, पापों से नहीं। .
ठाकुरजी से डरने का अर्थ उसने यह समझा कि उन्हें "विधिपूर्वक नैवेद्य आदि चढ़ाकर पूजना चाहिए-किसी प्रकार की अविधि नहीं होना चाहिए। इससे ठाकुरजी प्रसन्न होंगे।
फलां बाई के हृदय में यह संस्कार ऐसी दृढ़ता के साथ जम गया कि समय-समय पर वह कार्यों में भी व्यक्त होने लगा । हृदय का प्रबल संस्कार कार्य में उतर ही आता है। फुलां बाई का व्यवहार अपने नौकरों-चाकरों और पड़ोसियों के प्रति ऐसा ही बन गया। वह सब से लड़ती-झगड़ती
और निरंकुश व्यवहार करती । इस प्रकार फलां वाई शूलां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com