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बीकानेर के व्याख्यान ]
लोक में हित और सुख देने वाला है ।
मित्रो ! अगर आपको सूत्र के वचन पर श्रद्धा है तो निश्चय कर ले कि भगवान् देवाधिदेव हैं । उनका शरण छोड़कर दूसरे के शरण में जाना किस प्रकार उचित कहा जा सकता है ?
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बहुत-से लोग जगन्नाथ प्रभु का शरण छोड़ कर भैरोंभवानी की शरण लेते हैं । शायद उनका खयाल है कि भगवान् तो परलोक में कल्याणकारी हैं और भैरों-भवानी इस लोक के लिए कल्याणकारी हैं । लेकिन गीता में भी कहा है कि परमात्मा को पूजने वाला परमात्मा को प्राप्त होगा और भूत प्रेतों को पूजने वाला भूतों-प्रेतों को प्राप्त है। गा ।
अब प्रश्न किया जा सकता है कि भगवान् का ध्यान किस प्रकार लगाया जाय ? आज पर्युषण का प्रथम दिवस है । ग्राज से लेकर आठ दिनों में भगवान् महावीर को विशेष रूप से ध्यान में लाना है और उस ध्यान में अन्तराय करने वाले विघ्नों को हटाना है। ऐसे विघ्न अनेक हैं पर मुख्य रूप से दो विघ्नों की ओर आपको ध्यान देना चाहिए | वे यह हैं - शास्त्र की बात को अन्यथा समझ लेना और लौकिक भावनाओं में मन का फँसा रहना । आत्मकल्याण का पहला उपाय शास्त्र की बात यथार्थ रूप में समझना है । शास्त्र का श्राशय कुछ और हो और आप समझ लें कुछ और ही; तो बड़ा अनर्थ होता है । कुछ का कुछ अर्थ समझ लेने का क्या
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