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बीकानेर के व्याख्यान ]
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प्राचीन काल में राजाओं के साथ उनकी रानियाँ सती होती थीं। भारतीय विचारकों ने उसका विरोध किया और अंगरेजों के शासन में वह प्रथा बंद कर दी गई । लेकिन जैनधर्म के अनुसार संधारा जैसा पहले होता था बैसे ही आज भी होता है। जैनधर्म का रक्षक कोई राजा नहीं है, फिर भी उसमें ऐसी स्वाभाविकता भरी है कि उसके किसी सिद्धांत का खण्डन नहीं किया जा सकता। यह सब भगवान् के तप का ही प्रभाव है ।
नौ चौमासी तप कियो । वर्धमान !!
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प्रणवों
भगवान् के तप के प्रभाव से ही आज यह शासन अपने पूर्व रूप में विद्यमान । यद्यपि काल के प्रभाव से इसमें नाना सम्प्रदाय उत्पन्न हो गए हैं, फिर भी वैसी अंधाधुन्धी यहाँ नहीं है जैसी कि अन्यत्र दिखाई देती है । उदाहरणार्थ- एक पुस्तक में लिखा है कि ईसा का यह उपदेश होते हुए भी कि यदि तुम्हारे एक गाल पर कोई थप्पड़ मारे तो तुम उसके सामने दूसरा गाल कर दो: ईसा के इस उपदेश के पीछे तप का प्रभाव न होने से ईसाइयों ने अपने धर्म में स्वयं ही बड़ी अंधाधुन्धी मचा रक्खी है । बाइबिल का शब्द पढ़ लेने पर, उसका अनुवाद करने पर या उसके उपदेश के सम्बन्ध में किसी प्रकार की शङ्का करने पर लोग जिन्दे जला दिये गये हैं । उस धर्म के ठेकेदारों ने किसी को कूट-कूट कर मारा तो
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